Monday, July 18, 2011

गुमशुदा

पिन्जरेमें बंद तो शायद तब से हूँ
जब से life की खींची हर तस्वीर में मेरे सिवाय कोई और भी हे
focus हमेशा उस बन्दे पे ,लेकिन कोशिश मेरी उससे बेहेतर दिखने की
न जाने मेरा चेहरा क्यों हर बार और, और धुंधला हो जाता हे ?

कौन क्या सोचेगा , किसे क्या लगेगा ?
किस तरह पेश आया तो बाकियोंको जचेगा ?
ख्वाइश तो वैसे कई सारोंको को खाई में फेक देने की हैं
लेकिन फिलहाल हस ही दिया करता हूँ
अपने ही बनाये भूल भुलय्या में
हर दिन खोया करता हूँ

निकलता हूँ हर दिन ये सोचके के आज तो बस दुनिया को जितना ही हैं
इरादा तो पक्का ही हैं ,
बस ये ख़राब रास्ता और ये गंदे traffic से जान तो छुटे जनाब
घर को ये सोचके लोटता हूँ.....हूँ तो में दुनिया से अलग
पर ये साली भीड़ रोज निगलती हैं मेरे जीनेके ख्वाब

"में भी कुछ हूँ" ,ये दुसरोंको बताने की तमन्ना जबसे दिल में जगी हैं
मेरे रूह की सूरत शायद तब से ही थोड़ी बिगड़ी हैं
जबसे किसी और के मंजिलो से रस्ते धुन्ड़ना शुरू किया
तभीसे 'लापता और गुमशुदा लोगो ' की लिस्ट में मेरा भी नाम जुड़ा हैं .....

और वैसे मेरे उठने , जागने , खाने , पिने , रोने पर न किसी का जोर हैं न किसी की पाबन्दी
लेकिन मेरा पता मुझे मिल नहीं पाता
आझादी ........
लब्ज तोह वैसे बचपन से सुना हैं
बस लाख कोशिशो के बावजूद मलतब में जान नहीं पाता

1 comment:

ओहित म्हणे said...

wallah ... ise ek jawab bhi mlega ..